॥ अथ जय माल वर्णन॥
जारी........
करै लीला वह वैसै आय। जाँय हरि माता तब ही भाय॥
जाय कर गीध लड़ै तहँ भाय। हरावै छीनै जानकी माय॥
चोंच से घाव करै वहु भाय। रुधिर तन बहै बिकल ह्वै जाय॥
सम्हरि कर रावण उठै रिसाय। काटि पर दे कृपाण से भाय।४४०।
धरणि पर गिरै राम कहि भाय। उड़ै नहिं पावै अति दुख पाय॥
जाय लै रावण सीता माय। धरै आशोक बाटिका जाय॥
निश्चरी बहुत लेय बुलवाय। दिखावैं भय सब मूँह को बाय॥
राक्षसी त्रिजटा एक कहाय। धैर्य्य माता को देवै भाय॥
जाँय तहँ राम लखन सुखदाय। जटायूँ कहैं हाल सब गाय।४५०।
देखि कै गीध के दुख को भाय। राम तेहिं उर में लेहिं लगाय़॥
कहैं तुम प्राण को राखो भाय। देंय हम दिब्य स्वरूप बनाय॥
कहै तब गीध प्रभु सुखदाय। हमारी भाग्य उदय भै आय॥
जन्म भर मुर्दा आमिष खाय। आज हरि गोद में लियो बिठाय॥
नहीं कोइ त्रिभुवन मम सम भाय। रूप नयनन ते निरख्यौ भाय।४६०।
श्रवण ते सुनौ बचन सुखदाय। मुनी जन करते तप अति भाय॥
देत प्रभु तब कहुँ दर्शन जाय। आज धनि भाग्य हमारी आय॥
पठओ धाम आपने भाय। कहै अस चलै राम कहि भाय॥
बैठि सिंहासन मन हर्षाय। गीध की कृपा उबीध बनाय॥
पिता सम जानै श्री रघुराय। जाइहैं सबरी के गृह भाय।४७०।
राम औ लखन हिय हुलसाय। खाइहैं कन्द मूल फल भाय॥
प्रेम की प्रीति कही ना जाय। आइहैं ऋषि मुनि तहँ बहु भाय॥
सरोबर जल के कारण भाय। करैं परनाम सबै रघुराय॥
पूँछि कै प्रभु सब से कुशलाय। कहैं सब कृपा करो मुददाय॥
सरोवर जल निर्मल ह्वै जाय। सुनैं प्रभु मन्द मन्द मुसुकाय।४८०।
कहैं लै चलिए सेवरी माय। चलैं ऋषि मुनि संग दोनो भाय॥
संग लै सेवरी अति सुखदाय। जाँय पंपा सर पहुँचैं जाय॥
कहैं लछिमन ते राम सुनाय। उतारो चरनोदक सुखदाय॥
ऋषी औ मुनिन क प्रेम लगाय। परै जब यामे सुनिये भाय॥
होय जल निर्मल दुख सब जाय। सुनत ही लछिमन हिय हर्षाय।४९०।
उतारैं चरनोदक सुख दाय। छोड़तै चरनोदक के भाय॥
न होवै शुद्ध और गन्धाय। लखन ते कहैं राम मुसक्याय॥
छोड़िये आपन लछिमन भाय। लखन अपनौ तब छोड़ैं जाय॥
न होवै शुद्ध रहै वैसाय। राम तब कहैं लखन ते भाय॥
छोड़ि कर हमरौ देखौ जाय। लखन लै चरणोदक तब जाँय।५००।
छोड़ि दें शुद्ध न होवै भाय। कहैं ऋषि मुनिन ते राम सुनाय॥
चहैं सेबरी तो यह दुख जाय। न बोलैं ऋषि मुनि ज्ञान हेराय॥
खड़े कर जोरे सन्मुख भाय। चलैं नैनन ते आँसू भाय॥
दया हरि के उर तब अति आय। कहैं सेवरी से हरि हर्षाय॥
छोड़िये चरणोदक सुखदाय। परै जब सेबरी का सुखदाय।५१०।
तुरत ही जल निर्मल ह्वै जाय। कहैं ऋषि मुनिन ते राम सुनाय॥
भक्ति परभाव देखिये भाय। फंसे हो कर्म काण्ड में भाय॥
करो सुमिरन तन मन चित लाय। जाँय अभिमान सबत के भाय॥
कहैं सेबरी धनि धनि सुखदाय। मिलैं हनुमान वहाँ पर आय॥
बिप्र को रूप धरे सुखदाय। देंय सुग्रीब को आपु मिलाय।५२०।
देंय सुग्रीब हाल बतलाय। जात आकाश में देखा भाय॥
कहत श्री राम राम चिल्लाय। निरखि मम तन पट दियो चलाय॥
लीन मैं धरय्यौ प्रेम से भाय। कहैं प्रभु लाओ पट वह भाय॥
जारी........