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॥ अथ जय माल वर्णन॥

 

जारी........

आय रुकि जाँय पताक देखाय। बिभीषण कहैं श्री सुखदाय॥

आय गयो कुम्भकर्ण वीराय। बड़ा बलवान कहा नहि जाय॥

देखिहौ या के बल को भाय। कहैं रघुनाथ लखन सुखदाय॥

जाय के समर करौ हर्षाय। लखन धरि शिर चरनन पर धाय।३९५०।

 

चलैं लै रिच्छ कपिन हर्षाय। गर्द से कोइ न परै देखाय॥

शब्द सुनि परै तहाँ पर भाय। लखन जल बाण को देंय चलाय॥

होय जल बृष्टि कटक में जाय। गर्द गुब्बार का पता न भाय॥

परै सब सैना साफ देखाय। कहैं तब कुम्भकर्ण हर्षाय॥

लखन हौ धन्य धन्य सुखदाय। मास षट सोयन हम सुख पाय।३९६०।

 

जागि कै युद्ध करन हित आय। समय नहि मिल्यौ नहान को भाय॥

कृपा करि आप दिहेव नहवाय। गई सब सुस्ती तन की भाय॥

युद्ध करिहौं जो कछु बनि आय। सुनैं यह बैन ऋच्छ कपि भाय॥

दौरि कर चपटैं तन में जाय। सामने पहुँचि जाँय जे धाय॥

समेटि के मुख में छोड़ैं भाय। नाक औ कान औ मुख से भाय।३९७०।

 

निकसि के भागैं कपि ऋच्छाय। शीश पर खेल करैं बहु भाय॥

कूदि फिर कटक में पहुँचैं जाय। भालु कपि उदर के भीतर भाय॥

नासिका मुख कानन ह्वै जाँय। लगावैं दौरि हिये हर्षाय॥

निकसि फिर भागैं हँसि कै भाय। हँसै औ कहै सुनो तब भाय॥

लड़ै आयो की खेलन आय। लपटि कै काह करत हौ भाय।३९८०।

 

मैल क्या तन में रह्यौ छोड़ाय। नहीं बल तुम सब के कछु भाय॥

चहैं हम नहीं ऐसि सेवकाय। लै आवैं पत्थर के टुकड़ाय॥

लाखहू मन के एक एक भाय। ऋच्छ कपि संगै पहुँचैं जाय॥

शीश पर पटकैं हटै न भाय। गिरैं पत्थर जब नीचे आय॥

परैं जेहि पर सोई पिसि जाय। कहैं तब कुम्भकर्ण हंसि भाय।३९९०।

 

मसखरी हमका यह न सोहाय। मदार के बोड़िन कुञ्जर भाय॥

मारि कै कोई सकत भगाय। लड़न हम आये समर में भाय॥

यहाँ सब करत तमाशा आय। शूर कोइ परत नहीं देखलाय॥

भला कछु देर तलक समुहाय। सुनैं तब अंगद अति रिसिआँय॥

क्रोध करि पहुँचैं समुहे जाय। भिड़ैं कछु देर बालि सुत भाय।४०००।

 

फेरि गिर परैं मूर्च्छि महि जाय। चलैं फिरि कटक मध्य में जाय॥

भिरैं तहँ द्विविद नील नल आय। होंय ब्याकुल महि पर गिरि जाँय॥

रहै नहि सुधि बुधि मुर्च्छा आय। गवाक्षौ दधिबल गव रिसिआय॥

लड़ैं औ आखिर में गिरि जाँय। भिरैं सुग्रीव मयन्दौ धाय॥

लड़ैं कछु देर गिरैं महि आय। चलैं तब जाम्वन्त हंसि धाय।४०१०।

 

करैं रे दुष्ट सम्हरु मैं आय। लखै औ कहै सुनो बृद्धाय॥

हंसी हम नहि करवै है भाय। बृद्ध से जीतै हारै भाय॥

होति है हानि शास्त्र बतलाय। आप चतुरानन अंश कहाय॥

सृष्टि के करता पितु सुखदाय। आप से लड़िकै बैर बढ़ाय॥

बंश की उत्पति जाय नशाय। कृपा अब कीजै हम पर भाय।४०२०॥

 

लड़ैं हम आप से कैसे धाय। सुनैं हनुमान पहुँचि तहँ जाँय॥

होय फिर युद्ध बेग से भाय। मारु मुष्टिकन तमाचन भाय॥

होय तहँ शब्द दूरि तक जाय। कहैं तब कुम्भकर्ण हर्षाय॥

शम्भु का रूप आपु सुखदाय। इसी से दया जाति कछु आय॥

नहीं तो देखतेव मम बल आय। शम्भु है विष्णु के प्रिय अति भाय।४०३०।

 

करत नित बिष्णु से हर चरचाय। याद बैकुण्ठ कि आवत भाय॥

क्रोध आवत औ जात हेराय। सत्य मैं आप से कह्यौं सुनाय॥

आप संग युद्ध न हमै सुहाय। कहैं हनुमान विजय सुखदाय॥

बिष्णु के द्वार पाल तुम भाय। याद हमहूँ को सब है भाय॥

जारी........