॥ अथ जय माल वर्णन॥
जारी........
गिरै महि मुर्च्छित ह्वै के भाय। चेत कछु होय भजे रघुराय॥
कहै प्रभु पठवौ बैकुण्ठाय। सिंहासन दिब्य आय तहँ जाय॥
त्यागि तन रूप चतुर्भुज पाय। बैठि सिंहासन अति हर्षाय॥
कहै जै जै श्री रघुपति राय। पारषद चलैं यान लै धाय।४५२०।
देव नभ बाजा रहै बजाय। पहुँचि बैकुण्ठ बिष्णु ढिग जाय॥
रमा हरि आशिष दें हर्षाय। जाव अब सुख भोगो वीराय॥
चलै तब क्षीर समुद्र ते धाय। पहुँचि जाय जहाँ भक्त बहु भाय॥
यान तहँ पड़ा सुभग सुखदाय। बैठि कहि राम राम सुखदाय॥
खबरि यह रावण के ढिग जाय। जूझिगा मेघनाद पुत्राय।४५३०।
सुनत ही उठै गिरै बिलखाय। चेत नहिं रहै देर तक भाय॥
मँदोदरि रानी तहँ पर आय। देय मुख गंगा जल को लाय॥
करै पंखा मुख पर मन लाय। होश में आवै रावण राय॥
कहै रानी तब बैन सुनाय। कहा नहि मान्यौ सो फल पाय॥
युद्ध की करो तयारी जाय। देर अब काहे रह्यौ लगाय।४५४०।
प्रभु के हाथन तन बिनशाय। चलो हरिपुर बैठो हर्षाय॥
सुनै यह बैनि नारि के राय। उठै शिव सुमिरि चलै बलदाय॥
पहुँचि दरवाजे पर जब जाय। हुकुम तब कटक में देय कराय॥
सजै बहु सेन दौरि तहँ आय। दशानन जहाँ खड़ो देखराय॥
सवारी रथ की पर तब भाय। बैठि कै चलै संग सेनाय।४५५०।
पहुँचि कै समर भूमि में भाय। कहै अब लड़ौ संग शेषाय॥
सुनत ही चलैं लषण हर्षाय। राम के चरनन शीश नवाय॥
संग बहु बानर ऋक्ष सहाय। लखै तब दशमुख हंसै ठठाय।
मूल फल पाती पेट भराय। भिड़ैं मम सन्मुख कैसे आय॥
सुनत बजरंग उछरि कै जाँय। होय तब पकड़ि जोर से भाय।४५६०।
तमाचा मुष्टिक मारैं राय। पवन सुत के नहिं कछु बिसाय॥
कहैं हनुमन्त सँभरि अब राय। हनौं मुष्टिक तब छाती भाय॥
कहैं औ मुष्टिक देंय चलाय। लगै तब छाती पर मुरछाय॥
गिरै धरती पर चेत न भाय। निशाचर बहुत तरे दब जाँय॥
मरैं चट पहुँचैं हरि पुर जाय। होश में आवै रावण राय।४५७०।
बैठि चट रथ पर देय उड़ाय। पहुँचि रथ लंक पुरी में जाय॥
उतरि बैठै तन मन शरमाय। कहै मम अहंकार दुखदाय॥
छानि बल लियो न चलत उपाय। मनै मन बार बार पछिताय॥
चलै फिरि रथ को देय घुमाय। कटक में पहुँचि कहै रिसिलाय॥
लड़ाई करौ लषण ते भाय। बैन सुनि कहैं लषण हे राय।४५८०।
संभरिये बाण हमारो आय। खैंचि धनु मारैं शर रिसियाय॥
चलें भन्नाय सर्प सम धाय। दशानन बाण ते बाण को भाय॥
काटि महि ऊपर देय गिराय। लषण छा घंटा बाण चलाय॥
काटि दश मुख सब देय हटाये। लषण ते कहैं दशानन राय॥
न लागै बार तुम्हारो भाय। लड़ैं हम प्रभु के संग में भाय।४५९०।
बेधिहैं शर मेरे तन आय। बाण बहु कटक में देय चलाय॥
गिरैं कपि रिक्ष बिकल मुख बाय। बिभीषण कहैं प्रभू सुखदाय॥
आप बिन को अब करै सहाय। तुरत ही धनुष बाण ले धाय॥
युद्ध में पहुँचि जाँय रघुराय। निरखि रावण शर देय चलाय॥
काटि दुइ खण्ड करैं रघुराय। बाण तब कोटिन रावण राय।४६००।
चलावैं काटैं श्री सुखदाय। खींचि धनुबाण श्रवण ढिग लाय॥
चलावैं प्रभु पहुँचैं सर्राय। मंत्र पर भाव बड़ा है भाय॥
एक ते एक लाख ह्वै जाँय। बेधि सब तन में जावैं भाय॥
रुधिर की धार चलाय हहराय। देखि तन दशा दशानन राय॥
जारी........