॥ अथ जय माल वर्णन॥
जारी........
परैं श्री गुरु के चरनन जाय। उठाय के गुरु उर लेंय लगाय॥
कहैं आनन्द करौ अब जाय। राम सिया लषण चलैं हर्षाय॥
परैं माता के चरनन आय। देंय आशिष माता मन भाय॥
फरौ फूलौ सब जन सुख पाय। सुनैं तब भरत शत्रुहन भाय॥
पहुँचि जाँय नन्दि ग्राम ते आय। चरन पर राम सिया के धाय।
देंय आशिष बैठैं हर्षाय। कहैं यश कृष्ण दास यह गाय॥
पढ़ैं औ सुनै गुनै बनि जाय।४७१५।
'श्री राम जी के 'राज्य तिलक' की कथा वर्णन'
कजरी:-
सोहैं रतन सिंहासन ऊपर प्रभु के संग किशोरी जी।
नख सिख दिब्य सिंगार अनूपम प्रेम कि बोरी जी।
झाँकी देख के सुर मुनि मोहे परी ठगोरी जी।
बाँटि दीन है राम सिया को कर बर जोरी जी।५।
राज्य तिलक के समय मुदित पुर के नर गोरी जी।
रहीं झरोखन झाँकि छकैं छबि तृण को तोरी जी।
श्री वशिष्ठ जी कीन्ह तिलक फिर द्विजन हंकोरी जी।
मातु कौशिल्या और सुमित्रा कैकेयी इक ठौरी जी।१०।
बार बार आरती उतारैं मानहु भोरी जी।
गद्गद कण्ठ बोलि नहिं पावैं प्रेम फंसोरी जी।
देहिं अशीष मनै मन माता चित छबि जोरी जी।
करैं निछावर मणि पट भूषण भरि भरि झोरी जी।
याचक सब तन मन से हर्षित इच्छा तोरी जी।१५।
सुर मुनि जै जै करैं सुमन फेंकैं दोउ ओरी जी।
सुर गन्धर्व अपसरा तानैं तोरी जी।
नाना बिधि के साज बजैं तँह घन घुमण्ड चहुँ ओरी जी।
चारौं वेद शेष शिव शारद गणपति जोरी जी।
स्तुति करैं प्रेम तन मन से सब कर जोरी जी।२०।
बिनती करि सुर नर मुनि माँग्यौ बिदा बिदौरी जी।
कृष्ण दास कहैं युगुल रूप पर सूरति मोरी जी।२२।