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२९१॥ श्री मौताज शाह जी ॥

(अपढ़, संतोषी, सिरसा गढ़)

 

पद:-

ग़रीबी बहुत दुख दे हाय,

अन्न वस्त्र बिन काम सधत नहिं, भूख से तन चकराय।

नातेदार मित्र पुरजन के, दूरि ते देख पराय।

ऐसे ग्रह खराब कोइ आय, चलत न कोई उपाय।

सुमिरन पाठ में मन नहिं लागत, रहि रहि जिय अकुलाय।

कहैं मौताज शाह बिन भोगे फुरसत मिलत न भाय।५।

 

दोहा:-

सब पापन ते बड़ा है, यह दरिद्र दुख दाय।

मौताज शाह कहैं भोगिकै, हम यह दीन भगाय।

राम कृपा निधि आय कै, शिर पर कर धरि दीन।

चरनन पर जब हम परे, तुरतै गोदी लीन।

अन्त समय तन छोड़ि कै, प्रभु ढिग बासा लीन।

मौताज शाह की बिनय यह सुनिये परम प्रवीन।६।