॥ अथ जय माल वर्णन॥
जारी........
लखत आँखिन परकाश समाय। सरस्वती गंगा यमुना आय॥
दीनि टिकुली झूमड़ि टीकाय। बेनी पान कोथली पकपानाय॥
दीन श्री दुर्गा जी हर्षाय। दीन काली सेंदुर सुरमाय।७२०।
सोबरण मणी जड़ित डिबिआय। शम्भु ने दीन चन्द्रिका लाय॥
लगायो माथे तुम सुखदाय। दीन काली खाँड़ा एक लाय।
राम ने लीन प्रेम से माय। दुधारा कहैं जिसे सब माय।
काल के काल को देय नशाय। फेरि दुर्गा कटार लै आय॥
राम को दीन्हीं मन हर्षाय। बसन भूषन सिंगार कहाय।७३०।
दीन पृथ्वी देवी बहु लाय। नरमदा कज्जल दीन्हों लाय॥
सोबरण की डिब्बी सुखदाय। दन्त मंजन सुगन्ध सुखदाय।
दीन श्री धेनु मती हर्षाय। दीन कंघा गोदावरी आय॥
और ताम्बूल सुघर डिब्बाय। फुलेलो इत्र दियो हर्षाय॥
श्री सरयू सौ किसिम क लाय। भरा सिंगार दान सुखदाय।७४०।
सोबरन सीसिन की छबि छाय। जनक के न्योंतहरी सुर आय॥
दीन जाके जो मन में भाय। रूप दुइ सब सुर लीन बनाय॥
एक नभ एक मिथिला पुर आय। गये सब अवध तलक संग भाय॥
पठै कर लौटे निज गृह आय। दीन हम हाल सांच बतलाय॥
समुझिये अपने मन में भाय। लै आये हमै पवन सुतं माय।७५०।
राम के खबरि के हेतु पठाय। कह्यौ कछु चीन्ह जाउ लै भाय॥
दिहेव तब सिया क हिया जुड़ाय। बैठि अशोक बृक्ष पर माय॥
सघन पत्तन की ओट लुकाय। बैन मुँदरी के सुनि सिय माय॥
भईं अति मगन प्रेम उर छाय। लीन मुंदरी शिर में धरि माय॥
मनो श्री राम मिले सुखदाय। आय हनुमान चरण परि जाँय।७६०।
कहैं सब हाल मातु से भाय। देर अब नहीं होय कछु माय॥
आइहैं नाथ जाव हम धाय। मारि सब निश्चर देंय नशांय॥
चलैं संग लै आनन्द गुण गाय। धर्म की युद्ध करैं रघुराय॥
हुकुम मोहिं दीन्हेव नहीं है माय। नहीं तो लै चलतेंव हर्षाय॥
मारि सब निश्चर रावण राय। देखतिउं आँखिन यह सुख माय।७७०।
बीच समुद्र में लंक डुबाय। चिन्ह तक रहन न पावत माय॥
नाम परताप रहेउ उर छाय। सुनैं यह बैन जानकी माय॥
लेंय हनुमान को हृदय लगाय। कहैं हनुमान सुनो मम माय॥
भूख अब हमको रही सताय। हुकुम अब हमको दीजै माय॥
खाँय फल तूरिकै खूब अघाय। कहैं सिय रखवारे बहु भाय।७८०।
खाहु कैसे फल तुम सुख पाय। कहैं हनुमान मनै हर्षाय॥
देव अज्ञा हमको तुम माय। खाँय फल सब को देखैं जाय॥
कौन है बीर यहाँ पर माय। कहैं माता जाओ हर्षाय॥
चलैं हनुमान चरन शिर नाय। सुमिरि मन राम नाम को भाय॥
बढ़ावै रूप कौन कहि पाय। खाय फल बृक्षन देंय ढहाय।७९०।
निशाचर मारैं पकरि के धाय। लड़ाई अक्ष कुमार ते आय॥
होंय अति घोर थकै वह भाय। पकरि दोउ करन ते लेंय उठाय॥
उतानै पटकैं मही पर भाय। होश ताको कछु रहै न भाय॥
धरैं दाहिन पग छाती धाय । टूटि छाती पग धरनि में जाय॥
मनहुँ तरबूज फूटिगा भाय। खबरि जब रावण पास में जाय।८००।
पठावै मेघनाद को भाय। आय के युद्ध करै अधिकाय॥
बाँधि कै ब्रह्म फाँस लै जाय। मानि मर्य्याद फाँस की भाय॥
न बोलैं तनकौ चुप्प ह्वै जाँय। सनातन की मर्य्यादा भाय॥
तोड़ने से महिमा घटि जाय। राम ने मर्य्यादा हित भाय॥
बालि को बध्यौ ओट बिट पाय। नाम परताप उन्हीं के भाय।८१०।
जारी........