॥ वैकुण्ठ धाम के अमृत फल ८ ॥ (विस्तृत)
११५. पढ़ के करो न, तो बड़ा भारी पाप है। (जानते हुए कि यह गलत काम है उसे फिर भी करना, बड़ा भारी पाप है)।
११६. यह सब भीख उसी को भगवान देते हैं, जो दीन भिखारी होता है। उसी की झोरी भगवान भर देते हैं। अपने भाव से गुरू, सब देवी देवता खुश रहते हैं (और) मिलते हैं।
११७. बिना भाव के मन गन्दा रहता है, कुछ नहीं हो सकता - क्या खेल है? अभी ढाई सौ औरत मर्द अरब में भजन करते हैं। बैठे भगवान की लीला देखते रहते हैं। (उन पर) कोई थूकता है, कोई मूतता है, कोई ऊपर हगता है, वे चुप रहते हैं। जब उठते हैं तब धोकर साफ करते हैं।
११८. कितनौ कसनी (कष्ट) परै, डिगै नहीं। धीरज धरै। प्राण का, खान पान का लोभ त्याग दे। वही भगवान का भक्त हो सकता है। मंसूर, ईसा, शम्श तबरेज, अहमद, तेगबहादुर, गाँधी - यह भक्त हुए हैं, और आगे होंगे।
११९. सब कुछ खाने से भजन न होगा।
१२०. भक्त अपना भाव प्रकट नहीं करते, सब चला जाता है। तमाम लिखकर भेजते हैं, सब पढ़ने वाले तारीफ करते हैं, वे खुश होते हैं। चोर, माया सब लूट लेते हैं, कोई कुछ जमा नहीं कर पाते - कैसे पार होंगे? क्या गुरू हाथ पकड़ कर ले जावेंगे? जो वचन ऋषियों के हैं उन पर चलते नहीं। पढ़ते, सुनते, लिखते, दूसरों को समझाते हैं। तब पकडि़ जावेंगे। बार-बार हमें कहते हैं, करते अपने मन का हैं, हमें दुख होता है।
१२१. चारों धाम घूमो मन शान्त न होगा। एक साधू ४५ वर्ष घूमें, परन्तु जब बड़े महाराज के पास आये कि महाराज शान्ति न हुई, तब महाराज ने मंत्र दिया। बिना दीनता शान्ति लाये मन को शान्ति नहीं आती। बिना खता कसूर कोई (तुम पर) मूते, थूके, क्रोध न करो, तब शान्ति मिलेगी।
१२२. चाली मेहतर राम-राम करता था, सब कुछ प्राप्त हो गया। तुम भी मन लगाकर करो, कोई न जाने। तुम जानो भगवान जाने।
१२३. एक अन्धा था और हाथ पैर से लुंज भी था। वह बोला हे, ईश्वर तूने बहुतों से मुझे अच्छा बनाया। एक ने पूछा - अरे तू अन्धा भी है और हाथ पैर से लुंज भी है, तू कैसे कहता है, कि बहुतों से अच्छा हूँ। बोला - ईश्वर ने मुझे ऐसा दिल दिया है कि जिसमें मैं उसकी याद करता हूँ। यह दिल उसने बहुतों को नहीं दिया।
१२४. हमारे यहाँ एक अवध में मुसलमान लियाकत अली ड्राइंग मास्टर रहते थे। दुर्गा जी के भक्त थे। उनका लड़का गोंड़ा में रेलवे में नौकर था। उनके खाने पीने का इन्तज़ाम किये था। उनको सब देवी देवता के दर्शन होते थे। रिटायर होकर भदोही गये। सब हिन्दू उनके रहने खाने पीने का इन्तजाम किये थे। उनको दुर्गा जी के जरिए से सब देवी देवता मिलते थे, और नाना-प्रकार की लीला देखते थे। हमारे बहुत भक्त उनके दर्शन कर आये। कहते थे - हमें भगवती के बदौलत जो सुख होता है हमारा मन उसी में डूबा रहता है। बोलने की इच्छा नहीं होती। ९० में शरीर छूटा।
१२५. आप किसी देवता का आधा घन्टा जप या पाठ मन लगा कर करैं, तो सब काम ठीक हो जाय। यह दु:ख-सुख सबको भोगना पड़ता है। राम जी ने त्रेतायुग में बाली को एक बाण से मारा था, फिर वह द्वापर में भील भया। कृष्ण भगवान को एक बान से मारा। जब करीब आया तो भगवान ने कहा- यह बदला है, हमने तुमको एक बान से मारा था, बस शरीर छोड़ दिया। भीष्म जी ने १०१ जन्म में पहले एक सांप को लाठी से मारा। वह अधमरा हो गया। उसे कांटों पर फेंक दिया। वह ५२ दिनों तक फटक-फटक कर मरा। वही भीष्म जी को ५२ दिन रन भूमि में सजा मिली, बानों से बेधे परे रहे तब शरीर छुटा। राजा चित्रकेतु के भंडारा में १ कंडा में चारि सौ चींटी के अंडा जले। वै सब रानी हुइर्ं। राजा को ब्याही गईं। राजा बीमार हुए। सब मिलकर जहर देकर राजा को मारा। यह कर्मभूमि है। सब को भोगना पड़ता है।
१२६. पढ़ने-सुनने से कुछ नहीं होता जब तक कर्म न किया जाय।
१२७. जो दिल का बिलकुल साफ हो जाता है उसे सब मालूम हो जाता है। हमको भगवती का हुकुम बताने का नहीं है। हम उनको सर-धड़ अर्पण कर दिया है। ८ साल हो गये हैं। तुम अपने ठीक भाव और विश्वास को पक्का करो, तो सब कुछ जान जावोगे।
१२८. जिसका अटल विश्वास होता है, उसका कोई काम रूकता नहीं।
१२९. भजन की हजारों शाखायें हैं। केवल भजन से कुछ नहीं होता। ईमान ठीक हो, जीवों पर दया हो तब कुछ होता है।
१३०. भजन से लाभ जब होगा, जब सहन शक्ति होगी। (कोई) बुरा कहे भला कहे, (तुम) रंज न हो, न क्रोध हो।