॥ श्री चालीदास जी ॥
जारी........
हर दम वापर सूरति राखत मुक्ति भक्ति के दाते हो॥
चाली अधम खड़ा कर जोड़े काहे देर लगाते हो।४।
चाली की यह विनय सुनकर महाराज और महारानी जी ने चाली का एक एक हाथ पकड़कर बच्चों की तरह दुलराया और कहा 'हम तुम्हारे सामने हर समय रहेंगे और हर जगह तुम हमारे साथ रहोगे।' फिर चाली के सामने छटा छबि सिंगार की अद्भुत झाँकी हो गई।
दोहा:-
ना जीने खुशी है भक्तों न मरने का डर है।
राम नाम जप के परताप से काम हमारा सर है।२०।
निर्भय और निर्बैर हमेशा हर हनुमान का बर है।
चाली कहै चलौं साकेतै जो हमार निज घर है।२१।
पद:-
नाम कि धुनि जो ररंकार है कर्म रेख पर मेख मार है।
सब दिशि सुनिये एक तार है चालि कह सब सुख का सार है॥
पद:-
धन्य वे नर नारि हैं जे प्रेम से सुमिरन किया॥
नाम धुनि परकाश लय औ सामने रघुबर सिया॥
देव मुनि जै जै करैं बरसै सुमन हरषै हिया॥
चाली कहैं तन छोड़ि कै साकेत में बासा लिया।४।
दोहा:-
कन कन में सिया राम हैं, कन कन में प्रिय श्याम।
कन कन में कमला बिष्णु हैं चाली करें प्रनाम।२२।
सबै पदारथ पास हैं बनि जावै जो घूर।
राम नाम सुमिरन करै यही सजीवनि मूर।२३।
सन्मुख सीताराम हों सुनै नाम का तूर।
चाली कह सो भक्त है प्रेम में चकना चूर।२४।
बार्तिक:-
चाली की पहली अवस्था में यह मन में विचार उठा कि क्या मुसलमान जो भजन करते हैं भगवान के यहाँ अलग अलग बैठारे जाते हैं या एक ही जगह। तो आकाश बाणी हुई और यह शेर सुनाई दी :
शेर:-
फलक पर शोर यह बरपा रसूलिल्लाह आवैंगे।
मेरे चाली तेरे मन के सखुन को हल करावैंगे॥
फिर मोहम्मद साहेब आये, चाली को हृदय से लगाया और कहा 'वहाँ जाति की जरुरत नहीं है। जो परमेश्वर का भजन करता है वह उनकी परम्परा में हो जाता है। भगवान उसे अपने हाथ से दिब्य बस्त्र पहनाकर, सिर पर मुकुट लगाकर सिंहासन पर बैठाते हैं। सब एक ही जगह राखे जाते हैं। जो जैसा भजन किया है उस रीति से उनकी सजावत, सिंहासन मिलते हैं। वहाँ भी नम्बर लगे हैं, इतना फरक है।' चाली की शंका दूर हो गई, चरनन पर पड़ गए। रसूल ने उठा कर उनके पेट व माथे की खाक अपने कपड़े से साफ किया, फिर सर पर हाथ फेरा और अन्तर्ध्यान हो गये। भगवान के अनेक नाम हैं। जो जिस नाम से उनको भजता है उसी नाम से वे मिलते हैं।
दोहा:-
यह सृष्टि का खेल रचा ऐसा, कोई आता कोई जाता है।
चाली कहैं हर दम ख्याल रहै, सिया राम जगत पितु माता हैं॥
पद:-
हिन्दू मुसलमाँ सैकड़ों साकेत बासी हो गये।
चाली कहैं हम ध्यान करिकै पहुँचि देखा हो गये।
सुर मुनि की बानी सब सही हरि नाम बीजक बो गये।
तन मन लगा सुमिरन किया तब सब निवासी हो गये।४।
पद:-
जियतै में सब प्राप्त भया सो जीवन मुक्त कहाता है।
चाली कहैं तब वह भक्त भया हरि रूप रंग बनि जाता है।
परमानन्द उसे कहते वह दोनों दिसि विख्याता है।
सुर मुनि उसकी कीरति गावैं वह मुक्ति भक्ति का दाता है।४।
बार्तिक:-
सातों समाधियों में से चार से गती होती है। लय समाधि, शून्य समाधि, प्रेम समाधि, सहज समाधि। पाँचवीं जड़ समाधि से आयु बढ़ती है अजर अमर हो जाता है पर भगवान की प्राप्ति नहीं होती है। तमाम सिद्धियाँ भी प्राप्त हो जाती हैं। भय समाधि व चोट समाधि में शरीर छूटने पर प्रेत योनि या नर्क होता है। यह ऋषियों के वाक्य हैं।
पद:-
चौबिस घंटा भीतरहि जनम मरन सब होय।
चाली कह सुमिरन बिना पहुँचि सकत नहिं कोय॥
बार्तिक:-
जप, पाठ, पूजन, कीर्तन, कथा, सेवाधर्म सब सुमिरन के अन्दर हैं।
जिसमें मन लग जाय उसी से पार हो जाय।
पद:-
लखै नैनन से सिया सरकार सुनै श्रवनन से र रंकार।
सुर मुनि सब बोलैं जै जै कार चाली कह जियते भयो पार॥
पद:- राम नाम की महिमा भक्तौं मामूली कोई जान सकै।
जारी........