साईट में खोजें

॥ श्री चालीदास जी ॥

दोहा:-

राम नाम सुमिरन करै पावै मुक्ति औ भक्ति। 

चाली कह पासे सुलभ और कोई नहिं जुक्ति॥ 

नैन श्रवन जियतै खुलैं राम सिया दरशाय। 

चाली कह सुर मुनि मिलैं सिर कर धरि लिपटाय॥ 

षट चक्कर चलने लगैं चाली कह भन्नाय। 

कमल सातहू जाँय खिलि स्वरन से महक उड़ाय॥ 

नागिनि जगि शुभ लोक सब तुम को देय घुमाय। 

चाली कह देखत बनै मुख से बोलि न जाय॥ 

अमृत घट में पान हो अनहद की हो तान। 

चाली कह सुनि मस्त हो रहै न तन का भान।५। 

 

ज्ञान - ध्यान - विज्ञान सब राम नाम के बीच। 

चाली कह सुमिरन करौ छूटै भव की कीच॥ 

चौदह बरसै नाम जप तन मन प्रेम से कीन। 

चाली कह तब कृपा निधि पास आपने लीन॥ 

मेहतरि से बेहतरि भयो धन्य जानकी नाथ। 

चाली कह सुमिरन करो तब करि देंय सनाथ॥ 

माया चोरन को लिहे जाय बैठि गई दूरि। 

चाली कह सुमिरन करो बने हो कायर कूर॥ 

शान्ति दीनता लेव गहि आप को देय मिटाय। 

चाली कह मन होय बसि द्वैत भाव भगि जाय।१०। 

 

प्रेम भाव विश्वास अरु सत्य आय लिपटाय। 

चाली कह सो धन्य है नर तन का फल पाय॥ 

आंख फूटि दोनों गईं राम नाम नहिं छूट। 

चाली कह हिय की खुलीं कौन सकै अब लूट॥ 

हर हनुमति रक्षा करैं गदा त्रिशूल है हाथ। 

चाली कह सुमिरत रहत सिया सहित रघुनाथ॥ 

पर स्वारथ परमार्थ बिन नर तन बिरथा जान। 

चाली कह तन त्यागि के नर्क को कीन पयान।१४। 

 

पद:-

जल भोजन हल्का जब होवै। तन मन नाम से अपना नोवै॥ 

आलस नींद भागि जब जावै। तब आनन्द निज दिल में आवै॥ 

जो कछु देखै सुनै न भाषै। तब अनुभव की फरती साखैं॥ 

चाली कहैं पहिल यह साधन। तब वह बचि जावै सब बाधन।४। 

 

दोहा:-

जब आज्ञा सिय राम की कहने की ह्वै जाय। 

चाली कह तब ही कहै तब साधक बचि जाय।१५। 

 

बार्तिक:-

फिर कहने लगे नाम की महिमा बहुत अपार है अकथ है अलेख है, अगम है। शेष शारदा नहीं जान सकते। 'राम जी' नाम का प्रभाव नहीं कह सकते तब और देबी देवता क्या कहैं। जो जितना देखा सुना है उतना कहा है। उसी तरह हम भी थोड़ा कहते हैं। सुनो:- 

नाम से जो जो जाना सो लिखाते हैं। नाम से हिय की आँखें खुलीं, रूप की प्राप्ति, धुनि की, लय की, शून्य की, चारौं ध्यान की, चारौं अजपा की, पिपीलिका मार्ग की, मीन मार्ग की, विहंग मार्ग की, सुषमना की, अनहद बाजा की, अमृत पान की, कुण्डलिनी की, सब लोकन की, छइउ चक्कर की, सातौं कमलन की, दोनों स्वरन से तरह तरह की महकन की, देवतन के घर खान पान की, सब लोकों से तारों की, सारी सृष्टि अपने शरीर में देखी, सारी सृष्टि में अपने शरीर को देखा, अन्तर्ध्यान होना, काया प्रवेश होना, शरीर के चौदह भाग अलग अलग करना, फिर एक में मिल जाना, सब रूप धारन करना, फिर अपने रूप में आजाना। 

तमाम हिन्दू सन्त और भाई नाम से अजर अमर हैं, मुसलमान और उनकी पत्नी अजर अमर हैं। जो जानते हैं वे मानेंगे कहाँ तक लिखवावैं। 

 

दोहा:-

चाली कह चलना पड़ी होय हिसाब शुमार। 

चित्रगुप्त सब लिखत हैं जो मन उठत विचार॥ 

नर तन की सब इन्द्रियाँ होवैं वहाँ गवाह। 

शुभ कर्मन बैकुण्ठ दें अशुभ से नर्क अथाह॥ 

धर्म राज बैठे वहाँ चित्रगुप्त के पास। 

चाली कह उनको सबै गुन औगुन का भास॥ 

सच्चा प्रभु दरबार है सच्चा है इन्साफ़। 

चाली कह सुमिरन करै सब ह्वै जावै माफ़।१९। 

 

पद:-

सियाराम मोहिं गले लगा लो पास खड़े मुस्क्याते हो॥ 

नाम तुम्हार जपै तन मन से वाके हाथ बिकाते हो॥ 

 

जारी........