२३१ ॥ श्री लाला खज्जन लाल जी ॥
पद:-
भजिये राम नाम दुख भंजन।
सतगुरु के चरनन की रज लै कीजै दोउ दृग अंजन।
ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि से तन मन हो मंजन।
सुर मुनि मिलैं सुनो घट अनहद पिओ अमी हो सज्जन।
श्यामा श्याम रहैं नित सन्मुख जो सुर मुनि मन रंजन।
अन्त त्यागि तन अचल धाम लो सत्य कहैं यह खंजन।६।