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२३० ॥ श्री मैले शाह जी ॥


पद:-

चढ़िये राम नाम की रेल।

सतगुरु से टीकट को लै कर खोलि केंवारी पेल।

ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि रूप से होवै मेल।

अनहद सुनो देव मुनि आवैं करैं संग में खेल।

शान्ति दीनता प्रेम से भाई जियति कर्म दोऊ बेल।

मैले कहैं अन्त तन छोड़ि के फिरि न परौ भव जेल।६।