३५३ ॥ श्री अति बल सिंह जी ॥
पद:-
भजिये राम नाम को ककुआ।
सतगुरु करि सुमिरन बिधि जानो बने बैठ क्यों भकुआ।
ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि होय चलै जिमि तेकुआ।
अनहद सुनो पिओ घट अमृत काटो असुरन नकुआ।
सिया राम प्रिय श्याम रमा हरि सन्मुख दशैं भकुआ।५।
हरदम मस्त बताय सकौ क्या निरखि निरखि छबि छकुआ।
अन्त त्यागि तन निज पुर राजौ फेरि न जग दुख फकुआ।
जो नहिं मानौ कहा हमारा चलैं यमन के चकुआ।
तन से जीव बिलग करि देवैं पकड़ैं जैसे केचुआ।
जाय नरक में दाखिल कर दें काम न देवै ककुआ।१०।