३७८ ॥ अनन्त श्री स्वामी बाबा गोपाल दास जी ॥ (२)
जानो राम नाम सतसंग।
सतगुरु से जप की बिधि लीजै तब लागै यह रंग।
चौदह सहस चोर तन भीतर सारे होंय अपंग।
निर्भय औ निर्बैर जियत हो कौन करै फिर तंग।
हर दम रक्षक शिव त्रिशूल लिये बांये दिशि बजरंग।५।
ध्यान धुनी परकाश दशा लय जहँ सुधि बुधि हो भंग।
सिया राम प्रिय श्याम रमा हरि सन्मुख निरखौ अंग।
अन्तराय नेकौ नहिं होवैं तन मन भरौ उमंग।
अमृत पिऔ सुनौ घट अनहद सुर मुनि लेंय उछंग।
नागिन जगै चक्र सब घूमैं कमलन उड़ै तरंग।१०।
सब लोकन की फेरी करिकै जीति लेओ जग जंग।
कहैं गोपाल दास तन छूटै बैठो हरि के संग।१२।