३७८ ॥ अनन्त श्री स्वामी बाबा गोपाल दास जी ॥ ( ३ )
पद:-
हरि सुमिरन बिनु धोखा खैहो।
सतगुरु करि जप भेद जानि कै तन मन प्रेम में तैहो।
ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि हर शै से सुनि पैहो।
सिया राम प्रिय श्याम रमा हरि सन्मुख में छबि छैहो।
हर हनुमान संग में हर दम सुर मुनि संग बतलैहौ।
अमृत पिऔ सुनौ घट अनहद मन्द मन्द मुसुकैहौ।५।
नागिन जगै चक्र सब घूमैं सातौं कमल खिलैहौ।
कहैं गोपाल दास तन तजि के हरि पुर बैठक पैहौ।७।