४१८ ॥ श्री एक नाथ जी ॥
(शिष्य श्री जनार्दन स्वामी जी)
पद:-
कहैं एक नाथ मोंहि सतगुरु ज्ञान दीन्हो शब्द पै सुरति धरि
द्वैत को भगायो है।
नाम धुनि एक तार रोम रोम झनकार ध्यान परकाश पाय
शून्य में समायो है।
सुर मुनि वसुयाम दरश देत हर ठाम प्रिय श्याम छटा छवि
सन्मुख छायो है।
अनहद नाद ताल तन मन माहिं साल राग औ रागिनी
कुटुम्ब दर्शायो है।
पांच तत्व चारि तन पांच मुद्रा सोधि लीन कोटिन शरीर निज
देखने में आयो है।५।
शक्ति नागिनी जगाय लोक सब देखा जाय षट चक्र बेधे
सातों पदुम खिलायो है।
गगन ते अमी झुरै कहत ना स्वाद सरै उड़त तरंग प्यारी
हिय हर्षायो है।
हरि यश नित्य कह्यों दुःख सुख सम सह्यों शान्ति दीनता की गोद
ठीक ठौर पायो है।
सेवा सत्कार करि सर्व जाति मन भरि जियतै में गयन तरि
सत्य सब सुनायो है।
अन्त समय तन छोड़ि जगत से मुख मोड़ि बैठि कै विमान
राम धाम को सिधायो है।१०।