४१७ ॥ श्री हलचल शाह जी ॥
चौपाई:-
राम ने रावन कुल संहारा। सब को फिर बैकुंठ बिठारा॥
कृष्ण ने कंस को पटक के मारा। चट बैकुंठ को ताहि पंवारा॥
गांधी गौरमेन्ट संग लागे। तब से बहुत जीव हैं जागे॥
मोहन दास नाम कहवावा। बालक तरुण वृद्ध मन भावा॥
सब के उर में कीन्ह प्रवेशा। शान्ति दीन साधारण भेशा।५।
गुजर बसर भर बसन अहारा। सो सब जानत नर औ दारा॥
सन्त के लक्षण जवन कहावैं। निर्भय नेक शंक नहिं लावैं॥
राम नाम तन मन से ध्यावैं। या के बल सब दुःख नशावैं॥
श्री कबीर की ज्योति हैं भाई। स्वामी रामानन्द बताई॥
भारत देश सुधारन आये। दाया करि प्रभु स्वयं पठाये।१०।
दो हजार जब बीतै जब सम्बत। वैसे देश मे होवै सम्मत॥
सतरह बरस जब ह्वै जावैं। तब सब जन्ता सुखी कहावैं॥
बिना प्रताप होय नहिं कामा। गुनिये कैसा जग में नामा॥
सौ वर्ष भारत सुख सोई। पाप ताप सब जावे धोई॥
पूजा पाठ कीरतन गाना। सुमिरन हवन धर्म हों नाना॥
या में संशय तनिको नाहीं। सत्य कहैं हल चल तुम पाहीं।१६।
दोहा:-
करम चन्द पत्नी सहित हरिपुर बैठक लीन्ह।
हल चल कह मानो वचन ठीक भेद कहि दीन्ह।१।