४३१ ॥ श्री तरजन शाह जी ॥
पद:-
पक्कल केला के खुब बक्कल खायो बिदुर के घर घनश्याम।
धन बिदुरानी प्रेम में सानी सुफ़ल कियो निज चाम।
पीताम्बर हरि ने पहिरायो निज कर ते कटि थाम।
नगन मगन कछु जान न पायो ऐसी भक्ता बाम।
भाव के वश हैं त्रिभुवन स्वामी करुणा निधि गुण ग्राम।५।
मय परिवार के कीन्ह रवाना जो बाजत निज धाम।
तरजन शाह कहैं हे भक्तों चाव से सुमिरौ नाम।
दुर्लभ तन औ स्वांस समय है सारो अपना काम।८।