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५६३ ॥ श्री दुखी श्याम जी रसिक जी ॥

  (श्री जगदीश पुरी)

पद:-

श्रृंगार रस का सुख्क लेना हो तो सतगुरु कीजिये।

सूरति लगा कर शब्द पर तन मन से प्रेम में भीजिये।

धुनि ध्यान लय परकाश हो अमृत टपकता पीजिये।

सुर मुनि मिलै अनहद सुनो सारे असुर गहि भीजिये।

सन्मुख में श्याम कह बनि रसिक तन तजि अचल पुर चल दीजिये।६।

सन्मुख में श्यामा श्याम की झाँकी मनोहर लीजिये।

 

चौपाई:-

उपासना में रहो उपासा। ताको भयो नर्क में वासा।

जियतै जो करतल करि पावै। सो साकेत जाय हर्षावै।

झूठै गाल बजाउब छोड़ौ। सतगुरु करि जग से मुख मोड़ौ।

सूरति शब्द में देहु लगाई। ध्यान समाधि प्रकाश देखाई।

राम नाम धुनि परै सुनाई। सन्मुख राम सिया छबि छाई।५।

 

सुर मुनि शक्ति नित प्रति आवैं। हरि यश कहैं विहंसि उर लावैं।

अनहद सुनो अमी रस पाओ। मस्त रहो क्या कहि समुझावो।

जियतै रसिक जाव बनि भाई। दुखी श्याम कह सत्य सुनाई।८।

 

दोहा:-

सब में अपने इष्ट को देखै वसु औ याम।

दुखी श्याम कह रसिक सो ताको कर प्रणाम।१।

सिया राम के अंश सब जीव चराचर जान।

दुखी श्याम कह द्वैत को त्यागो हो कल्यान।२।