५६२ ॥ श्री पंडित राघव जी ॥
पद:-
चेटुवा पियैं घुनघुना खेलैं बाल रूप में चारों भाई।
वैयां चलैं पेट भल सरकैं आंगन में सुन्दर सुखदाई।
कौशिल्या कैकेयी सुमित्रा नृप दशरथ तन मन हुलसाई।
सातौं सै रानी दशरथ की चूमैं मुख उर लेंय लगाई।
अरुन्धती श्री वशिष्ठ नित प्रति आवैं अशिष देंय खेलाई।५।
पुर के नर नारी सुख लूटैं प्रेम में पगे रहैं हर्षाई।
सुर शक्ती निज रूप बदलि कै आवैं दर्शन हित नित धाई।
कर देखैं सब अंग निहारैं विहँसि के गोद में लेंय उठाई।
सतगुरु करो लखो यह लीला सब घट भीतर परै देखाई।
ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि रग रोवन से देय सुनाई।१०।
अनहद सुनो देव मुनि दर्शैं पिओ अमी रस आह बुताई।
नागिन जगै चक्र सब बेधैं सातौं कमल उलटि खिलि जाई।
उड़ै सुगन्ध स्वरन ते जानो मस्त होहु मुख बोल न आई।
पृथ्वी पवन आकाश अग्नि जल रंग पाँच तन शोधै भाई।
सन्मुख चारों भाइन की छबि हर दम रहै न फिर बिलगाई।
अन्त त्यागि तन निज पुर राजौ छूटि जाय जग की औंघाई।१६।