६९६ ॥ श्री टेरी शाह जी ॥(२)
पद:-
हर जगह साकेत उसको जिसने पाया नाम को।
सतगुरु किया मारग मिला कीन्हा सुफ़ल नर चाम को।
परकाश ध्यान समाधि सन्मुख रूप सीता राम को।
सुर मुनि मिले परिचय दिया कर प्रेम निज निज धाम को।
अनहद मधुर की धुनि सुना अमृत पिया बे दाम को।
टेरी कहैं सो भक्त हैं जो कर चुके इस काम को।६।