८४ ॥ श्री गुरुदत्त दास जी ॥
गजल:-
साधू क काम क्या है कहते सुनाय कै ॥१॥
तन मन को मारि हरि भजै साधू कहाय कै ॥२॥
रसना बिगड़ गई है साधुन में आय कै ॥३॥
कढ़ी प्रसाद तस्मई माल पुआ खाय कै ॥४॥
मर कर के सुअर होकर गावों में जाय कै ॥५॥
खाओगे मल सबों का मन भर अघाय कै ॥६॥
गुरुदत्त दास कहते हल्ला मचाये कै ॥७॥
धिक्कार धिक् धिक् जन्म जग नर तन को पाय कै ॥८॥