२१ ॥ श्री नानक जी ॥
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धोय के प्रेम से पीजिये, कह नानक हो ज्ञान ॥३६॥
संतन की महिमा अगम, को करि सकै बरवान ॥३७॥
नानक हर दम संग रहैं, जिनके कृपानिधान ॥३८॥
चौपाई:-
संतन के मन की हरि जानैं। हरि की लीला संत बखानै ॥१॥
संत सदा सँग केलि करत हैं। हरि संतन का ध्यान धरत हैं ॥२॥
हरि औ संत संग रहैं कैसे। जल औ जल तरंग हैं जैसे ॥३॥
दोहा:-
हरि औ संत में भेद नहिं, कह नानक सुनि लेव ।
तन मन मारो दीन ह्वै, जानि गूढ़ गति लेव ॥१॥
सात कमल तन में अहैं, नाल एक ही जान।
नानक कह अभ्यास करि, देखैं चतुर सुजान ॥२॥
चौपाई:-
कमल लाल रंग दल है चारी। बैठिगजानन सुरति सम्हारी ॥१॥
गुदा चक्र का भेद बतावा। करिकै जतन जानि हम पावा ॥२॥
कमल पीत रंग षट दल जानो। शक्ति सहित ब्रह्मा कर थानो ॥३॥
इन्द्री चक्र का भेद बतायन। उत्पति यहँ से होत सुनायन ॥४॥
नाभी इन्द्री मध्य बखानो। कुंडलिनि को यहँ परे जानो ॥५॥
पूँछ को मुँह में बैठिदबाये। जब जागै तब सुख उपजाये ॥६॥
श्याम रंग दल आठसुहावन। विष्णु लक्ष्मी बास है पावन ॥७॥
पालन करत सबन पर दाया। नाभि चक्र का हाल सुनाया ॥८॥
बारह दल रंग स्वेत कमल हैं। शिव गिरिजा जहँ बैठिबिमल हैं ॥९॥
हिरदय चक्र क हाल यह भाई। जो देखा सो दीन बताई ॥१०॥
कमल धूम रंग सोरह दल जहाँ। आतम इच्छा शक्ति रहत तहँ ॥११॥
कण्ठके चक्र का भेद है प्यारे। चलु आगे मिलिहैं सुखसारे ॥१२॥
कमल सहस दल बहु परकाशा। जोति निरंजन गिरिजा बासा ॥१३॥
दोहा:-
शेष सुकुल रंग सहस फन, ऊपर छाया कीन ।
त्रिकुटी के नीचे अहै, जानहिं परम प्रबीन ॥१॥
चौपाई:-
दुई दल कमल रंग शशि केरा। रेफ़ विन्दु को तापर डेरा ॥१॥
दोहा:-
शिव ब्रह्मा विष्णू जपैं, राम नाम यह जान ।
चमकै तेज अपार तहँ, को करि सकै बखान ॥१॥
चौपाई:-
त्रिकुटी चक्र कहत हैं याको। तिरगुण का फाटक है बाँको ॥१॥
सूरति शब्द में जौन लगावै। सदगुरु किरपा ते खुलि जावै ॥२॥
तीनों देव खुशी हों ताता। आशिष देंय जाव अब भ्राता ॥३॥
दोहा:-
तिरबेनी स्नान करि, जब निर्मल ह्वै जाय ।
तब जोती के दरस हों, गगन महल में जाय ॥४॥
पद:-
गगन महल में रहस करत हैं राधे कृष्ण मुरारी जी ॥१॥
राग रागिनी सखा सखी सँग मुरली बाजै प्यारी जी ॥२॥
अनहद वाजा बरनि सकै को ताल सुरन गति न्यारी जी ॥३॥
नानक देखत ही बनि आवै कीजै ध्यान सम्हारी जी ॥४॥
दोहा:-
शून्य भवन में लय भई, सुधि बुधि गई हेराय ॥१॥
किरपा निधि की कृपा ते, फिर आगे बढ़ि जाय ॥२॥
भँवर गुफ़ा जाको कहत, महा शून्य है नाम ॥३॥
जड़ समाधि तहँ होत है, हठयोगिन को धाम ॥४॥
सत्य लोक के पास ही, बना अहै गोलोक ॥५॥
कृष्ण के अन्तर राधिका, गौवन का तहँ थोक ॥६॥
चौपाई:-
बने विचित्र भवन तहँ पावन। रंग रंग के वृक्ष सुहावन ॥१॥
पुष्पन की सुगंध तहँ उड़ती। मधुर मधुर वायु जहँ चलती ॥२॥
झूला झूल रहे गिरधारी। कोटि काम छवि तन पर वारी ॥३॥
जारी........