१९९ ॥ श्री विक्रमादित्य जी ॥
दोहा:-
सत्य धर्म छोड़ै नहीं, कैसेउ कसनी होय ।
दान से मुख मोड़ै नहीं, बास पास में होय ॥१॥
जा को जेहि विधि हरि मिलैं, सोई मारग ठीक ।
नाम सदा सुमिरन करै, और बात सब फीक ॥२॥
दोहा:-
सत्य धर्म छोड़ै नहीं, कैसेउ कसनी होय ।
दान से मुख मोड़ै नहीं, बास पास में होय ॥१॥
जा को जेहि विधि हरि मिलैं, सोई मारग ठीक ।
नाम सदा सुमिरन करै, और बात सब फीक ॥२॥