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॥ अथ इन्द्रासन वर्णन ॥

जारी........

दादुर शब्द करैं तहँ पर अति मछली बहुरंग भाई जी ॥५२॥

ताल कूप वापिन में जल नहिं घटै बढ़ै कछु भाई जी ॥५३॥

बहुत भाँति के रहैं पखेरू बोलैं बहु विधि भाई जी ॥५४॥

पक्षी भँवरा दादुर तीनौ जाति क हाल बताई जी ॥५५॥

सुर नहिं विलग होंय इन सब के ताल में ताल मिलाई जी ॥५६॥

कच्छप सोहैं तालन में मछरी के बीच सोहाई जी ॥५७॥

कच्छप मछली मेढ़क पावैं लाई मन हरखाई जी ॥५८॥

हंसन के हित दुग्ध औ मोती मिलै सदा सुखदाई जी ॥५९॥

पक्षी नाना विधि के फलन को पावैं मन हर्षाई जी ॥६०॥

 

चकई चकवा मोरन के हित गोली केन सोहाई जी ॥६१॥

सुन्दर रूप मनोहर अबला घूमैं हँसि मुसुकाई जी ॥६२॥

हरे वसन सबके तन सोहैं मदन सदन सब भाई जी ॥६३॥

ऊपर से सारी बहु रँगी ओढ़े सब हैं भाई जी ॥६४॥

खुले केश नागिन सम काले इतर सुगन्ध लगाई जी ॥६५॥

महर महर महकैं तन उनके मुख में पान सोहाई जी ॥६६॥

गले में पान कि लाली झलकै तन अति सूक्षम भाई जी ॥६७॥

नेत्र विशाल कमल सम तिनके शुक सम नाक लखाई जी ॥६८॥

दोनों कुच जैसे नारंगी गद्दर पकी न भाई जी ॥६९॥

नाभि गँभीर पेट अति कोमल देखत मूर्छा आई जी ॥७०॥

 

कटि नाजुक कदली सम जंघा कंघा केश फसाई जी ॥७१॥

बीसौं नख हैं लाल लाल दोउ श्रवण बने सुखदाई जी ॥७२॥

बाहैं दोउ गजशुंडी के सम हुँडी सबै चोराई जी ॥७३॥

हाथ पाँव की गादी लाली अरुण कमल सम भाई जी ॥७४॥

एड़ी अनार फूल सम लाली कुंदुरूप की लजाई जी ॥७५॥

दाँत बतीसी रँगे पान में शोभा वरणि न जाई जी ॥७६॥

भूषण अंग अंग पर सोहैं को कवि सकै बताई जी ॥७७॥

पाँवन के भूषन की धुनि खम खम खम हो भाई जी ॥७८॥

गाल गुलाब फूल सम लाले जरा शिकन नहि आई जी ॥७९॥

चिबुकि बनी सुन्दर मनमोहन अधर लाल हैं भाई जी ॥८०॥

 

मुख की कान्ति चन्द्रमा के सम मदन में सनी सनाई जी ॥८१॥

वृद्ध कबहुँ नहि होंय सदा वै वयकिशोर रहैं भाई जी ॥८२॥

मानहुँ मनसिज बहुत रूप धरि खेलत खेल खेलाई जी ॥८३॥

अधिक हवा जो चलै बदन नाज़ुक फ़ौरन उड़ि जाई जी ॥८४॥

तीनि तीनि बल खांहि चलत महँ मानौ टूटी भाई जी ॥८५॥

हड्डी बदन में एकौ नाहीं पगन में सिर लगि जाई जी ॥८६॥

बोलैं मधुर बचन छोटे बालक सम तोतरि भाई जी ॥८७॥

जाय वहाँ पर जीव जौन कोइ तुरतै पकरैं धाई जी ॥॥८८॥

भौहैं बनी कमान सी ललुवा सूरति हिये समाई जी ॥८९॥

करैं कटाक्ष दृगन कोरन से सैन कि बान चलाई जी ॥९०॥

 

रंग रंग फूलन की माला गले में पड़ी सुहाई जी ॥९१॥

नाचैं गावैं हँसि मुसुक्यावैं नयनन नैन मिलाई जी ॥९२॥

घुच्चा गालन ऊपर मारैं चोट न लागन पाई जी ॥९३॥

बाजा साथ में सब बाजत हैं कहँ लगि तुम्हैं बताई जी ॥९४॥

गुद गुदाई कोइ देवैं हँसि कै तो तुरतै गिर जाई जी ॥९५॥

ऐसी हँसी होत वहँ जानौ मानौ होली आई जी ॥९६॥

हँसि मुसुक्याय थम्हावैं कुच दोनौं हाथन में भाई जी ॥९७॥

सीने से चिपटाय लेयँ फिर मुख चूमैं हर्षाई जी ॥९८॥

सुधि बुधि बिसरि जाय तब बच्चा काम क वान समाई जी ॥९९॥

देहिं जगाय मदन मनहरनी सब सामान देखाई जी ॥१००॥

 

करै विहार संग पलंगन पर तन मन हिय हुलसाई जी ॥१०१॥

वीर्य स्खलित होत नहीं वहँ सुख दोनों मिलि पाई जी ॥१०२॥

इतर फुलेल लगावैं तन में करैं बहुत सेवकाई जी ॥१०३॥

जारी........