॥ श्री बैकुण्ठ वर्णन ॥
जारी........
चौपाई:-
बहुत रूप धरि गरुड़ सिधावहिं। भूषण वसन सबै पहिरावहिं ॥१॥
धन्य गरुड़ को कहिये भाई। दास करम जे करत सदाई ॥२॥
नाना रूप धरे हैं स्वामी। वन्दौ चरण नमामि नमामी ॥३॥
काया में हरि खोजैं भाई। ताको नाम कबीर कहाई ॥४॥
स्वामी रामानन्द का चेला। सदा रहत है हरि से मेला ॥५॥
सतगुरु कृपा जानि जो पाई। सो हम तुमको दीन बताई ॥६॥
दोहा:-
राम नाम सुखसार है और बात बेकार ।
सूरति हर दम शब्द में, लागि रहै एक तार ॥१॥
राम सिया सन्मुख सदा, सुनिये वचन हमार।
नाम रूप परकाश लय, मिलिगो बेड़ा पार ॥२॥
सौ वर्ष मृत्यु लोक के, एकै दिन भा नर्क ।
चौबिस घंटा जानिये, या में नेक न फर्क ॥३॥
महा कष्ट है नर्क में, मैं नहिं करूँ बयान ।
कह कबीर वसुयाम भजि राम नाम कल्यान ॥४॥
मानुष का तन पाय करि, राम नाम जिन लीन ।
तिनका चोला सुफ़ल है, सोई परम प्रवीन ॥५॥
चौपाई:-
चारि भुजा नर नारी जो हैं। गौर वदन देखत मन मोहैं ॥१॥
पुरुषन के तन वसन विराजैं। गोली पगड़ी सिर पर छाजैं ॥२॥
रतन जड़ित पगड़ी में ऐसे। देखत बनै कहत नहिं कैसे ॥३॥
नारिन भूषन वसन सुहाये। मदन देखि कै जिनहिं लजाये ॥४॥
बारह वर्ष के नर औ नारी। रहैं सुनौ बैकुण्ठ मंझारी ॥५॥
भोगैं पुण्य मनै हर्षावैं। क्षीण पुण्य मृतुलोक को आवैं ॥६॥
दोहा:-
जायँ जीव बैकुण्ठ जो, चढ़ि विमान हर्षाय ।
इन्द्रपुरी ह्वै कै सुनौ, तब बैकुण्ठ को जाय ॥१॥