॥ अथ गोलोक वर्णन ॥
जारी........
बैठैं ठाढ़ी होंय सब, बोलैं मधुरे बोल ॥४२॥
भोजन के लिये हव्य दें, जल के एवज अनार ॥४३॥
धन्य धन्य राधे रमन, चरनन की बलिहार ॥४४॥
कबीर कहै तो क्या कहै, सतगुरु किरपा जान ॥४५॥
सोई कछु कहि सकत है, जाके आँखी कान ॥४६॥
नाम रूप को जानि कै, सोई वहँ पर जाय ॥४७॥
आँखिन देखै हरि चरित, सोई कहिहै आय ॥४८॥
आदि अंत जानै कवन, कब से है गोलोक ॥४९॥
हर दम हरि सुमिरन करौ, मिटै हर्ष औ शोक ॥५०॥
होहु अतीत पुनीत तब, महा तुरिया माहिं ॥५१॥
भीतर बाहर एक रस, आवागमन नसाहिं ॥५२॥