५५ ॥ श्री स्वामी राम दास जी ॥
पद:-
लक्षमीनारायण कि झांकी मेरे सन्मुख रहती भ्रात।
जिनकी कृपा कटाक्ष ते जीवन जल भोजन मिलि जात।
कमलासन से युगुल रूप क्या मन्द मन्द मुसुक्यात।
शंख चक्र गदा पद्म लिये कर निरखत हिय हुलसात।
कानन कुण्डल जगमग जग मग शिर पर मुकुट सुहात।५।
श्याम रंग तन परम सुहावन माता गौर देखात।
देखत बनै बनै नहिं वर्णत कोटिन काम लजात।
शान्ति शील सन्तोष दीनता छिमा सत्य के गात।
श्रद्धा दया सतोगुण हैं हरि प्रेम के हाथ बिकात।
कीन परिक्षा भृगु जी जायके उरि कसि मारी लात।१०।
उठि कै चरन लगे सोहरावन बार बार बलि जात।
चरन कमल सम कोमल आप के उर मम पत्थर तात।
खता हमारी माफ करो मुनि रहि रहि जिय अकुलात।
आप तो सब के पूज्य मही सुर सब लोकन बिख्यात।
अस कहि सिरहाने वैठायो मुनि तन मन सकुचात।१५।
हब्य अनार पवायो मुनि को दोउ नैनन जल जात।
लक्षमी जी यह लीला देखि के मुनि चरनन परिजात।
बोलि न सकैं कण्ठ अति गद गद निरखैं मुनि को गात।
दहिन अंग नारायण पकरयौ बाम लक्षमी मात।
लागे सेवा करन प्रेम से पूंछि पूंछि कुशलात।२०।
शेष न पायो मर्म सेज पर जिनके भइ यह बात।
मांगि बिदा मुनि चले हर्ष हिय जिमि तरू वर के पात।
आय कह्यौ ऋषि मुनिन ते जहँ जहँ भई जौन कछु बात।
जय जय कार की वाणी ऋषि मुनि करत हिये हर्षात।
तब से बड़े बनायो त्रटषि मुनि सब लोकन गइ बात।२५।
भजन करै निशि वासर हरि का जग से तोड़ि कै नात।
अँजुलि जल परमान वृथा यह नर तनु छीजा जात।
मातु पिता भ्राता सुत बनिता भगिनी मित्र बनात।
सब झूठे मतलब के साथी सांची मानो बात।
अवसर पर कोइ काम न ऐहैं जब यम करिहैं घात।३०।
आखिर में लै जाँय नर्क को फिर पीछे पछितात।
राम दास कहैं हर दम सन्मुख नाम प्रेम से कात।३२।