५६ ॥ श्री बिष्णु दास जी ब्रह्मचारी॥
पद:-
अंजनि तनय बीर सुखदायक सन्मुख रहते श्री हनुमान।
सुभग सिंगार अंग कंचन सम कान्ति कोटि रवि मान।
तन मन प्रेम से जे नर ध्यावत तिनके संघ बलवान।
निर्भय सो संसार में डोलै सदा करैं कल्यान।
कांधे मुंज जनेऊ पहने लाल लंगोटा जान।५।
बज्र गदा दहिने कर सोहै राम सिया को ध्यान।
रोम रोम में राम नाम रमि गयो निकलती तान।
भीतर बाहेर झांकी प्रभु की निरखत हर दम मान।
राजतिलक जब भयो प्रभू का सुर नर मुनि सब जान।
उर बिदारि दिखलायो सब को राम नाम चमकान।१०।
नजर न ठहरी सुर नर मुनि की प्रगट्यौ कै तेज महान।
राम सिया उर में हैं राजत दिव्य रूप दोउ जान।
खींचि प्रकाश लीन हरि तब फिरि झांकी सुघर देखान।
सवा घड़ी तक सुर नर मुनि सब देख्यौ अति सुख मान।
जय जय कार की धुनि सुर मुनि कियो धन्य दास हनुमान।१५।
स्वामी को सेवा से बश करि लीन्हेउ आपु सुजान।
उर फिर बन्द भयौ तुरतै हरि किरपा लीजै मान।
चिन्ह तलक लखि परयौ नहीं कछु ऐसे भक्त महान।
राम सिया के चरन परे प्रभु सिया मनै सुख मान।
शिर पर हाथ मातु पितु फेरयौ कहँ लगि करूँ बखान।२०।
राम सिया की सेवा के हित शम्भु रूप दुइ जान।
एक रूप ते सेवा करते एक ते सुर मुनि मान।
राम नाम के बांटन हारे मुक्ति भक्ति दें दान।
तन मन प्रेम से नेह करै जो ताके हाथ बिकान।
कपट कटारी काढि दूरि धरि दीजै तब हो ज्ञान।
बिष्णुदास ब्रह्मचारी कहते तब होवै कल्यान।२६।