८१ ॥ श्री सहदेव जी ॥
चौपाई:-
बिना रूप की वस्तु न कोई। बिना नाम केरूप न होई।१।
साधन करके जानो भाई। पढ़ि सुनि के वह हाथ न आई।२।
किसी जीव को दुख जो देहैं। सो यह मारग कैसे पैहैं।३।
बाद बिबाद त्यागि जो देवै। सो सर्गुण निर्गुण लखि लेवै।४।
दोहा:-
मुख से शब्द निकालिये, प्रेम भाव करि जौन।
सुन्दर उनके रूप लघु, वनिके निकसैं मौन।१।
क्रोध से शब्द निकालिये, काले निकसैं तौन।
घूमके सन्मुख खड़े ह्वै, अन्तराय हों तौन।२।
सब में सब से न्यार हैं, सत्य कहैं सहदेव।
प्रेम दीनता से मिलै, है जो सब का देव।३।