१०३ ॥ श्री गिरधारी दास जी ॥
पद:-
नाम कि बिधि सतगुरु से जानै कैसे सुर मुनि जपते हैं।
धुनी नाम की खुलै अखण्डित अजपा जिसको कहते हैं।
नाम रूप परकाश हर जगह हर दम सब में बसते हैं।
जानि लेय मन मानि लेय तन सुफल होय नहि गिरते हैं।
बिमल बिलोचन उघरैं तब हीं गुप्त प्रगट सब लखते हैं।५।
तीनों गुण को त्यागि शुभा शुभ कर्म अगिन में जरते हैं।
कुण्डलिनी जाग्रत ह्वै जाई सब लोकन में फिरते हैं।
कमल खिलैं सातों षट चक्कर वेधैं अनहद सुनते हैं।
इड़ा पिङ्गला एक होंय तब फिर सुखमन में चलते हैं।
सुखमन नाड़ि में नाड़ि चित्रणी ह्वै बज्रणी में घुसते हैं।१०।
ता के अन्दर ब्रह्म नाड़ि है तहं पर जाय ठहरते हैं।
इसी को अभयन्तर धुनि कहते शुकुल धुवाँ सम लखते हैं।
सुर मुनि वायू रूप से मिलकर धुनी के साथ बिचरते हैं।
ध्यान लय दशा नाम से होती सुधि बुधि तहां बिसरते हैं।
सत्य लोक साकेत पुरी को विहँग मार्ग लै चढ़ते हैं।
गिरधारी कहैं हम तो हर दम राम सिया लखि हँसते हैं।१६।