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॥ माटी खान लीला ॥

॥ माटी खान लीला ॥

जारी........

सबै वस्तु तुम रोज बिगाड़त। दुख हम को बहु होत निहारत।७५।

 

लरिका पुर में हैं बहुतेरे। तुम जैसै तैसे नहि हेरे।

कहैं श्याम में तो अति कारो। मैं भी ऐसो नहीं निहारो॥

पूँछि बताव आज तुइ माई। हम को ऐसा कौन बनाई।

जो मिलि जाय तो लाव वोलाई। हम को गौर बनावै आई॥

सब कुछ तुमरे गृह में माई। दे दीजै जो मांगै आई।

नर नारी पुर के सब आवैं। श्याम श्याम कहि के गोहरावैं॥

जो कारो होतेउँ नहि माई। तौ किमि श्याम कहत कोइ आई।

या से कीजै मातु उपाई। काहे श्याम कहै कोइ आई॥

कहैं यशोदा सुनो कन्हाई। कहां सिखी तुम यह चतुराई।

ऐसी बातैं करत बनाई। तुम ते कोई पेश नहि पाई।८०।

 

हम बूढ़ी तुम छोटे लाला। हमैं सिखावत आला बाला।

कहैं श्याम सुनिये मम माता। बूढ़ी आप सत्य यह बाता॥

बूढ़े सब पर छिमा करत हैं। लड़िका खेलत लड़त हँसत हैं।

लड़िका अपनी बानि न छोड़ैं। मातु पिता नाहक मुख मोड़ैं॥

जब सयान ह्वै जैहौं भाई। चञ्चलता आपुइ मिटि जाई।

अबहीं यही नीक मोहिं लागै। और बात में मन नहिं पागै॥

छोटे पर तुम माता कैसे। खेल्यौ खेल बताओ वैसे।

जो हमरे मन में वह भाई। वैसे खेलव मातु सदाई॥

आये नन्द भवन में ज्योंही। कह्यो यशोदा लीला त्योंही।

नन्द कहैं सुनिये मम भैया। ऐसी ठीक नहीं लड़िकैया।८५।

 

जो कोइ पाहुन कहीं से आई। अपने गृह में जाय बताई।

बड़ा ढीठं है कुँवर कन्हाई। हमरी तब अति होय हँसाई॥

कहैं श्याम सुनिये मम माता। माई झूठ कहत सब बाता।

नीक बिकार सबै हम जानैं। इनका कहा कौन नहि मानैं॥

जौन वस्तु माई मोहिं देवैं। तौन खुशी से लै हम लेवैं।

ऐसा कौन जगत में ताता। काटै अपने हाथन गाता॥

यह सब पगलन के हैं कामा। नाशैं वस्तु बिगड़ैं धामा।

गृह में पुरुष रहत एक भारी। लेवै रूप हमारो धारी॥

सब कारन उसका है ताता। मानो आप सत्य यह बाता।

माई वाको भेद न पावैं। हम ही को नित झूठ लगावैं।९०।

 

एक दिवस हमरे ढिग आयो। कसिकै घुड़क्यो मूँह फैलायो।

हम पूछा तुम कौन हो भाई। हमको रहे हो जो डेरवाई।

हम से कह्यो भूत मम नामा। रात दिवस हमरो यह कामा।

मातु पिता से जो कहुँ कहिहो। तो तुम यहां रहन नहिं पैहो॥

पकड़ि के लै जैहों मैं धाई। यमुना जी मे देंव डुबाई।

हम सब आप क दीन बताई। जस चाहौ तस करौ उपाई॥

सुनि हरि बचन नन्द दुख पायो। बिरथा लालहि दोष लगायो।

सुनो यशोमति तुम मम बानी। पकड़ो ताहि तुम्हैं हम जानी॥

लाल को जो अब दोष लगैहौ। तौ तुम घर में रहन न पैहौ।

होत प्रभात उठेबनवारी। दधि की मेटुकी जाय उधारी।९५।

 

लागे पावन कुँवर कन्हैया। यशुमति को दैकर दुचितैया।

गई यशोमति देखैं हरि को। पावैं दही शंक नहि तनको॥

माता को निरख्यो बनवारी। मेटुकी उलटि दीन तहँ सारी।

दहि भवन में तहँ भरि गयऊ। यशुमति के उर अति दुख भयऊ॥

भागे श्याम मातु रपटायो। आँगन में क्या खेल मचायो।

आगे श्याम औ पीछे मैया। पकरि न पावैं दें कोड़रैया॥

माता थकि हाँफन जब लागीं। तब हरि के उर दाया जागी।

दौड़ि के लपटि गये हरि जाई। माता पकरयो अति रिसिआई॥

यशुमति कहैं टेरि बलरामहिं। रसरी लावो बांधैं श्यामहिं।

लै बलराम धरैं बहु रसरी। कई तरह की मोटी पतरी।१००।

 

जारी........