१२७ ॥ श्री शेख जी ॥
ध्रुपद:-
नैया हरि की जै पार।१।
नदिया बहत अगम धार लहरि उठत बार बार खेवन हार मतवार
बूड़ी जाय बीच धार।२।
दीनन के तुम मुरारि लीजै मो को उबारि दीजै बिगरी सुधारि।३।
प्राणन ते शेख प्यार करते हौ नित दुलार तन मन धन दीनि बारि।४।
ध्रुपद:-
नैया हरि की जै पार।१।
नदिया बहत अगम धार लहरि उठत बार बार खेवन हार मतवार
बूड़ी जाय बीच धार।२।
दीनन के तुम मुरारि लीजै मो को उबारि दीजै बिगरी सुधारि।३।
प्राणन ते शेख प्यार करते हौ नित दुलार तन मन धन दीनि बारि।४।