२०८ ॥ श्री नारान्तक जी ॥
दोहा:-
दधिबल मो को मार कै दीन बिष्णु को धाम।
मैं हरि भक्तों को करूँ बार बार परनाम॥
नारान्तक था नाम राक्षस तन औ मन्द मति।
तहूँ दियो बिश्राम हरि के दास कि सत्य मति॥
दोहा:-
दधिबल मो को मार कै दीन बिष्णु को धाम।
मैं हरि भक्तों को करूँ बार बार परनाम॥
नारान्तक था नाम राक्षस तन औ मन्द मति।
तहूँ दियो बिश्राम हरि के दास कि सत्य मति॥