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२१३ ॥ श्री लवणा सुर जी ॥


सोरठा:-

लवणासुर मम नाम मारि शत्रुहन सुख दियो।

भक्तन का यह काम अधमन हित नर तन लियो।१।

रूप चतुर्भुज पाय बैठ्यों हर्षि बिमान में।

जय जय कार सुनाय पहुँचि गयों हरि धाम में।२।