२१४ ॥ श्री त्रिजटा जी ॥
दोहा:-
श्री जानकी मातु की कछु सेवा हम कीन।
त्रिजटा नाम हमार था तन राक्षसी मलीन।१।
माता करि किरपा हमैं पठ यो हरि के धाम।
ऐसी दया कि खानि हैं सुमिरौ आठौं याम।२।
दोहा:-
श्री जानकी मातु की कछु सेवा हम कीन।
त्रिजटा नाम हमार था तन राक्षसी मलीन।१।
माता करि किरपा हमैं पठ यो हरि के धाम।
ऐसी दया कि खानि हैं सुमिरौ आठौं याम।२।