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२१६ ॥ श्री दूषण जी ॥


सोरठा:-

दूषण कहैं सुनाय हमरे सब दूषण हटे।

कहँ लगि करौं बड़ाय हम हूँ हरि पुर में डटे।१।

बिपिन मांहि रघुराय युद्ध कीन मारयौ हमै।

हरि पुर दियो पठाय सत्य बतायों मैं तुम्हैं।२।