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२५३ ॥ श्री सुभद्रा जी ॥


चौपाई:-

राधा कृष्ण नाम जो ध्यावै। ता को मुक्ति भक्ति मिलि जावै॥

परम मनोहर श्याम औ श्यामा। निरखै सन्मुख आठौं यामा॥

नाम कि धुनि सब तन से जारी। सुनतै बनै मधुर धुनि प्यारी॥

समय अमूल्य न त्यागौ भाई। जान लेव सतगुरु से जाई॥

तब यह अमृत अनुपम पैहौ। ना कर चली न जीभ डोलै हौ।५।

स्वत: नाम धुनि तन से होवै। जो सब कर्म भर्म को खोवै॥

अजपा या को सुर मुनि गायो। सतगुरु बिना कोई नहि पायो॥

यह मरजाद सनातन जानो। बेद शास्त्र पढ़ि मिलत न मानो॥

साधन करै तो करतल होवै। नाहीं तो पढि सुनि क्या होवै॥

है मत्थे में हाथ न आवै। जन्म जन्म रोवै पछितावै।१०।

सबै पदारथ पास तुम्हारे। ताला द्वैत लगा है प्यारे॥

कुञ्जी बिना खुलै यह कैसे। रहि जैहौ जैसे के तैसे।१२।


दोहा:-

सत्य प्रेम औ दीनता संगै मिलि जब जांय।

तिरगुन फाटक बज्र का तब ढीला पड़ि जाय।१।

सूरति के संग मन चलै शब्द पै ह्वै असवार।

ताला द्वैत खुलै तबै उघरैं तुरत केवार।२।

कहैं सुभद्रा बचन यह मानि लेय जो कोय।

तन मन प्रेम लगाइये नित मुद मंगल होय।३।