२५४ ॥ श्री कैलाश जी ॥
चौपाई:-
बक्ता श्रोता परम प्रवीना। जिन हरि नाम को साधन कीना।
ध्यान समाधि जानि जिन लीन्हा। तिन सब कहब सुनव सुख लीन्हा।
बक्ता जौन चरित को बांचै। सो श्रोता के आगे नाचै।
बक्ता श्रोता सम सुख पावैं। अन्त समय हरि पुर को जावैं।
तन मन प्रेम एक करि पावैं। सो श्रोता हरि यश कछु गावैं।५।
रोम रोम में श्रवण बनावै। सो श्रोता हरि यश सुनि पावै।
नाम हमार अहै कैलाशा। जँह शिव शिवा भक्त गण बासा।७।