२६७ ॥ श्री भगवान दास जी ॥
जारी........
काली लोक दुर्गा लोक पास ही है देखा जाय मातन के दर्श करि
आशिष को पायो है।
लौटि बैकुण्ठ आय घूमि चारों देखि लीन कीन परणाम सब
स्वामी हरषायो है।
शीश पर कर फेरयो उर में लगायो मोहिं शोभा कौन बरनै
शेष शारद चुपायो है।
तीनि बिष्णु संग तहाँ रमा जी को देखा नहिं चौथे बिष्णु संग तहां
रमा लखि पायो है।३०।
क्षीर के समुद्र मध्य शेष जी की सेज बनी शुकुल है रंग
परकाश बहु छायो है।
ता पै मातु पिता राजैं लखि कोटि काम लाजैं शेष फन सहसौ क छाता
क्या लगायो है।
छोटा बैकुण्ठ या को कहते हैं सुर मुनि या ही में समुद्र क्षीर
और में न पायो है।
फूलन के वृक्ष जो हैं तीनि तीनि हाथ सोहैं कई रंग फूल सोहैं
मन ललचायो है।
हरी हरी पत्ती और शाखैं सब हेम कैसी जड़ैं पेड़ी रूपा सम
देखने में आयो है।३५।
झूला बे आधार पड़े यान बहु सोहैं तहां झूलैं नर नारी बहु
हर्ष उर छायो है।
यानन पर बैठे बहु बैस बारह वर्ष जानो भुजा चारि चारि
देखतै में बनि आयो है।
मखमल फर्श पांच रंग की बिछी है प्यारी ता में फूल बेलि को
कसीदा कढ़वायो है।
भूषन बसन तहां बृक्षन में फरैं झरैं आप ही इकट्ठा
दुइ टाल लखि पायो है।
गरुड़ तहाँ पै देखा रूप बहु बनि बनि भूषन बसन
नर नारिन पिन्हायो है।४०।
और सब लोकन में जाय पहिराय आवैं नाम परताप जानि
कार्य्य ये उठायो है।
हव्य औ अनार कार्य्य भूषन बसन कार्य्य करत हैं नित्य प्रति
समय ना बितायो है।
चन्द्र लोक सूर्य्य लोक ब्रह्मा लोक इन्द्र लोक सिद्ध लोक शक्तिन के
लोक घूम आयो है।
बलि धाम नाग धाम घूमि शेष ढिग आयो कमठ के ऊपर आप
आसन जमायो है।
जल पै कमठ चारों ओर दिग्गज चारि बारह हैं बराह तहाँ
देखने में आयो है।४५।
शिर पै अवनि धारे दिग्गज बराह सारे शेष मध्य भाग में
अवनि शिर लायो है।
ध्यान में मगन सब उनको न जानि परै लखैं छबि राम श्याम
ब्रह्मानन्द पायो है।
आय महि ऊपर कैलाश ओर चलि दीन उत्तर तरफ
एक फाटक देखायो है।
बैठे गज बदन बिशाल भुजा सोरह है सबन में अस्त्र धारे
कालहू डेरायो है।
चरनन परयों जाय अज्ञा दीन हरषाय तब कैलाश में
प्रवेश करि पायो है।५०।
सुन्दर भवन सोहैं कहत बनत नाहिं ता के मध्य बट बृक्ष
शोभा अति छायो है।
शिवा शिव राजत षरानन बिराजत हैं सरस्वती बैठी
जारी........