२६७ ॥ श्री भगवान दास जी ॥
जारी........
बीणा मधुर बजायो है।
काल भैरव बीर भद्र संग बैठे देखा तहाँ नन्दी गण सिंह मोर
मूसहू देखायो हैं।
नाना भांति गण और बाहन अनेक भाँति काल परिवार मानो
नेवते में आयो है।
भवनन माहिं सब बैठे कोई ठाढ़े लेटे देखि निर्भय फिरि
शिव ढिग आयो है।५५।
चरनन शीश धरि शिव शिवा जी के फेरि सबके चरन परि
आशिष को पायो है।
बरनै शिंगार कौन आनन्द के आनन्द हैं नाम के आचार्य
सब लोक यश छायो है।
फेरि तन माहिं देखा मध्य भाग पीठी पर तीनि बिष्णु ध्यान औ
समाधि में लुभायो है।
अनहद बाजा सुना बाजहू क बाजा सुना साज राग रागिनी
समाज लखि पायो है।
किणी और किंकिणी रुणी और झुन झनी सिंह की सी धुनी
नाद का ये नाद छायो है।६०।
हरि दरवाजे पर गान और बजान होत कबहूँ न बन्द होय
मंगल मचायो है।
पांचो मुद्रा जानि लीन ध्यान औ समाधि करि चौदह ब्रह्म एक ही हैं
नाम बिलगायो है।
खेचरी से जीह नाम होत उच्चारन है अगोचरी से उलटि
ब्रह्माण्ड में समायो है।
चाचरी से तत्व रंग त्रिकुटी लखाय परै भूचरी सुरति शब्द
एक मे मिलायो है।
उन्मुनी मुद्रा से प्रकाश जोति रूप लखा जाप खुली पन्द्रह बिधि
जीह ना डुलायो है।६५।
खेचरी क जीह बास अगोचरी ब्रह्माण्ड बास चाचरी क नैन बास
जानि मन भायो है।
भूचरी श्रवण बास उन्मुनि क नाशा वास तीन हू गुणन के
स्वरूप लखि पायो है।
रज गुण गौर वर्ण सतगुण श्वेत वर्ण तम गुण श्याम वर्ण
देखने में आयो है।
लाल वस्त्र रज गुण के श्वेत वस्त्र सतगुण के श्याम वस्त्र तम गुण के
तन में सोहायो है।
इनसे जो मेल करै सोई आगे पग धरै ब्रह्मा बिष्णु शम्भु के
ये अंश कहवायो है।७०।
पांच तत्व रंग कहौ पांच प्राण रंग कहौ आतम स्वरूप जीव
रूप जौन पायो है।
पृथ्वी क पीला रंग जल का है श्वेत रंग वायु का है हरा रंग
देखने में आयो है।
पावक का लाल रंग श्याम आसमान रंग पांचों प्राण हरा रंग
लखि हरखायो है।
जीव श्वेत रूप अति कोमल सुहावन है आतमा प्रकाश रूप
ताहि में समायो है।
क्रोध लोभ मोह मद कपट पाखण्ड दम्भ झूठ निद्रा आलस
जम्हुआई लखि पायो है।७५।
अपमान शोक दुःख हानि रोग द्वैत कूट भय व काल मृत्यु पाप
रंग श्याम पायो है।
काम रति गौर रंग मन माया बहु रंग चंचल चलाक जाय
नर्क में गिरायो है।
मान हर्ष लाभ सुक्ख शान्ति शील दया छिमा सरधा सन्तोष
जारी........