२९७ ॥ श्री अवध प्रताप नारायण सिंह ॥
दोहा:-
राधे कृष्ण शिवा शिव दाया मो पर कीन्ह।
पाप नाश सारे भये हरि पुर बैठक लीन्ह॥
चौपाई:-
हरि हर सब की लज्जा राखैं। अवध प्रताप नरायन भाखैं॥
कछु स्नेह हमारी भाई। श्याम शम्भु से रही सदाई॥
सोरठा:-
याही से हरि धाम पठ्यो मोको जानिये।
हरि हर सब गुण ग्राम, सत्य बचन मम मानिये॥
छन्द:-
तन त्यागन स्वर्ग द्वार गयो तँह शंकर श्याम ने दर्श दियो।
संग राधे उमा जी राजि रही धुनि जै जै कार कि गाजि रही।१।
सिंहासन आवत एक लखा, रमणीक लगे तामे चार सखा।
मम सन्मुख आय के ताहि धरा, अति कोमल बिस्तर ता में परा।२।
तकिया दुइ छोटी एक बड़ी, अति गोल औ चिक्कन तामें पड़ी।
सँहासन बे आधार ठँगा जड़े ता में बहुत रंग के हैं नगा।३।
तन छूटत में नहि कष्ट भयो, जैसे सुख निद्रा में सोय गयो।
तन दिव्य चतुर्भुज मोहिं मिल्यौ, लखतै मन चित्त हमारो खिल्यौ।४।
चौपाई:-
भूषन बसन गरुड़ पहिरावा। कर गहि सिंहासन बैठावा।
चलै पारषद लै सिंहासन। जाय उतार दीन इन्द्रासन।
इन्द्र के दरशन तँह पर कीन्हा। फिर सिंहासन पर चढ़ि लीन्हा।
लीन पारषद यान उठाई। पहुँचायो हरि पुर में धाई।
सिंहासन से उतरि के भाई। पहुँच्यो रमा बिष्णु ढिग जाई।५।
क्षीर समुद्र शेष पर आसन। मातु पिता बैठे कमलासन।
कीन प्रणाम चरण शिर नाई। मातु पिता ते आशिष पाई।
कह्यौ जाव अब करो बसेरा। कोटि वर्ष तक सुक्ख घनेरा।
फिरि वँह से चलि के हम आयन। दूसर सिंहासन तँह पायन।
बैठै लेटै जस हो इच्छा। सब प्रकार की तँह पर रच्छा।१०।
झूला एक झूलने हेता। दीन्ह मोहिं श्री कृपा निकेता।
शोभा तँह की बरनि न जावै। नर नारी तँह अति सुख पावैं।
कोइ बैठे कोइ लेटे झूले। भोजन मिलत समय अनुकूलै।१३।
दोहा:-
बारह बर्ष क तन सुभग, नर नारिन को जान।
देखत ही बनि परत है, को करि सकै बखान॥