२९८ ॥ श्री नैन शाह जी ॥
शेर:-
भजन करने में बिघ्न डालता है काहे मना।
बिना कसूर ही के कर रहा है तनी तना।
काम औ क्रोध लोभ मोह मद को करदे फना।
जिन्होंने मुझको तुझको कोटिहू जनम से हना।
सख्त ऐसी है सज़ा जैसे कि लोहे के चना।५।
अगर न मानेगा तो पायगा फल दोज़ख घना।
ठगों का साथ छोड़ करके जो हरि रंग में सना।
वही फिर जाय अमरपुर में हरि का रूप बना।
मेरा वजीर है तू कहना मेरा मान ले।
छोड़ी कितनी हि शाही ख्याल करके जानले।१०।
फन्दा बड़ा खराब है आने व जाने का।
या से समझ जा प्यारे मतलब सिखाने का।
सूरति के संग जब तक लागैगा तू नहीं।
तब तक तो नाम की धुनी पावैगा तू नहीं।
देखैग तब तो झाँकी बाँकी अदा धरे।१५।
श्यामा औ श्याम सन्मुख मुरली अधर धरे।
कहैं नैन शाह मौका ऐसा न मिलेगा।
यह तन मन बशर का सुन्दर मुश्किल से मिलेगा।१८।