३०५ ॥ श्री पोखराज परी जी ॥
पद:-
ढूँढ़ि थकी मैं श्याम सजनवाँ।१।
कैसे मिलैं करूँ कौन जतनवाँ।२।
तन मन प्राण के रक्षक जो हैं। कब निरखौं भरि दोनों नयनवां।३।
पोखराज परी कहैं दरशन दीजै तलफत हूँ दिन रैनवाँ।४।
पद:-
ढूँढ़ि थकी मैं श्याम सजनवाँ।१।
कैसे मिलैं करूँ कौन जतनवाँ।२।
तन मन प्राण के रक्षक जो हैं। कब निरखौं भरि दोनों नयनवां।३।
पोखराज परी कहैं दरशन दीजै तलफत हूँ दिन रैनवाँ।४।