३०६ ॥ श्री नान्हू दास जी ॥
पद:-
सुनो बिनती सुनो बिनती सुनो बिनती ये नर दारा।
करो सतगुरु करो सतगुरु करो सतगुरु भव हो पारा।
धुनी होती धुनी होती धुनी होती जो रंकारा।
सुनो ताको सुनो ताको सुनो ताको हो सुख सारा।
रहै हर दम रहै हर दम रहै हर दम जो एक तारा।५।
सदा सन्मुख सदा सन्मुख सदा सन्मुख में करतारा।
ध्यान होवै ध्यान होवै ध्यान होवै सुघर प्यारा।
लखौ लीला लखौ लीला लखौ लीला हो मतवारा।
समाधी हो समाधी हो समाधी हो सबै टारा।
नहीं सुधि बुधि नहीं सुधि बुधि नहीं सुधि बुधि को समभारा।१०।
उतरि आवो उतरि आवो उतरि आवो वही तारा।
होय अनुभव होय अनुभव होय अनुभव अपरम्पारा।
तरौ तारो तरौ तारौ तरौ तारो जला जारा।
मिलै छुट्टी मिलै छुट्टी मिलै छुट्टी तब संसारा।
अभी फुरसत अभी फुरसत अभी फुरसत करो कारा।१५।
नहीं मानो नहीं मानो नहीं मानो तो बेकारा।
पड़ौ दोज़ख पड़ौ दोज़ख पड़ौ दोज़ख चलै आरा।
न कुछ चलिहै न कुछ चलिहै न कुछ चलिहै वहां चारा।
भजो हरि को भजो हरि को भजो हरि को जो निशि बारा।
कहैं नान्हू कहैं नान्हू कहैं नान्हू तब निस्तारा।२०।
करते जो ऐश यँह पर हरि को नहीं भजैं।
आवैंगे बार बार वह दुनियाँ को नहिं तजैं।
जब तक रहैं गरभ में उलटे बँधे पड़े।
मल मूत्र ही कि थैलिन के बीच में अड़े।
चौरासी लक्ष योनियों में काटते चक्कर।
नान्हू कहैं हरि भजन में करते हैं जीव मक्कर।२६।