३२५ ॥ श्री कन्हई दास जी ॥
पद:-
सभा में जौन कोइ आये उन्हैं मैं शिर नवाता हूँ।
सभों के चरणों की रज लै शीश निज पै चढ़ाता हूँ।
क्षिमा करिये मेरी त्रुटियों को जो कुछ मैं सुनाता हूँ।
मुबारक होंय दिन सब को यही हरि से मनाता हूँ।
रहै जारी सदा उत्सब यह तन मन से मैं चहता हूँ।
कहैं कन्हई सदा निर्भय और निर्बैर रहता हूँ।६।