३२७ ॥ श्री जुम्मन जी ॥
पद:-
हुई गलती हुई गलती हुई गलती जो है भारी।
करो मत गम करो मत गम करो मत गम ऐ नर नारी।
भजन करिये भजन करिये भजन करिये तन मन वारी।
खता बख्शैं खता बख्शैं खता बख्शैं गे बनवारी।
नहीं होगी नहीं होगी नहीं होगी कभी ख्वारी।५।
धुनी खुलिहै धुनी खुलिहै धुनी खुलिहै वो एकतारी।
लखौ झाँकी लखौ झाँकी लखौ झाँकी युगुल प्यारी।
ध्यान लय हो ध्यान लय हो ध्यान लय हो औ उजियारी।
करौ मुरशिद करौ मुरशिद करौ मुरशिद बनै सारी।
खिली तन में खिली तन में खिली तन में है फुलवारी।१०।
टहलिये तो टहलिये तो टहलिये तो चमन क्यारी।
महक रहती महक रहती महक रहती अजब जारी।
न कछु मुश्किल न कछु मुश्किल न कछु मुश्किल अभी बारी।
गरीबी लो गरीबी लो गरीबी लो जो दिलधारी।
मुहब्बत हो मुहब्बत हो मुहब्बत हो लगै तारी।
कहैं जुम्मन कहैं जुम्मन कहैं जुम्मन तब बलिहारी।१६।
शेर:-
जुम्मन कहैं इस खेल को जो जान पायगा।
सो बेधरक तन छोड़ हरि के पास जायगा॥