३२८ ॥ श्री सत्य नारायण दास जी ॥
पद:-
भजन श्री हरि का करने में महा सुख है महा सुख है।
शरनि सतगुरु की चलने में महा सुख है महा सुख है।
मार्ग सुमिरन क खुलने में महा सुख है महा सुख है।
नाम धुनि हरदम सुनने में महा सुख है महा सुख है।
युगुल छबि सन्मुख लखने में महा सुख है महा सुख है।५।
ध्यान लय नूर मिलने में महा सुख है महा सुख है।
देव मुनि संग खेलने में महा सुख है महा सुख है।
दीनता धैर्य्य धरने में महा सुख है महा सुख है।
बचन कटु मृदुल सहने में महा सुख है महा सुख है।
धर्म निष्काम करने में महा सुख है महा सुख है।१०।
भोजन जल अर्पि पाने में महा सुख है महा सुख है।
सदा निर्बैर रहने में महा सुख है महा सुख है।
प्रेम के पथ पै परने में महा सुख है महा सुख है।
मन को निज बश में करने में महा सुख है महा सुख है।
तन को अपने हि शोधन में महा सुख है महा सुख है।१५।
सदा इसमें बिचरने में महा सुख है महा सुख है।१
चक्र षट तन के बेधने में महा सुख है महा सुख है।
सातहू कमल खिलने में महा सुख है महा सुख है।
शक्ति कुण्डलिनी जगने में महा सुख है महा सुख है।
बचन सतगुरु क गहने में महा सुख है महा सुख है।२०।
एक रस हो के पगने में महा सुख है महा सुख है।
ख्याल में मस्त रहने में महा सुख है महा सुख है।
जियत सब प्राप्त करने में महा सुख है महा सुख है।
अन्त साकेत चलने में महा सुख है महा सुख है।२४।