३३० ॥ श्री नज़ीर जी ॥
गज़ल:-
तन मन लुभा लिया है घनश्याम हँसते हँसते।
निर्मल किया हिया है घनश्याम हँसते हँसते।
नूपुर छमा छम बाजैं नाचैं हमारे सन्मुख।
अमृत छका दिया है घनश्याम हँसते हँसते।
मुरलि कि तान सुनकै सुध बुध सबै भुलाती।५।
कैसा हिला लिया है घनश्याम हँसते हँसते।
सीने लगा के चट पट लेते हैं बोसा प्यारे।
ऐसा सितम किया है घनश्याम हँसते हँसते।
जिसने किया न सुमिरन मानुष के तन को पाकर।
उस से भला छिया है घनश्याम हँसते हँसते।१०।
धुनि नूर ध्यान लय सब पासै में हैं तुम्हारे।
मुरशिद मिला दिया है घनश्याम हँसते हँसते।
अब जान करके भाई खोलो तो ताला अपना।
सुन्दर समय दिया है धनश्याम हँसते हँसते।
कहते नज़ीर जानो तन मन से प्रेम हो जब।
सबका यही जिया है घनश्याम हँसते हँसते।१६।