३४१ ॥ श्री तुलसी दास जी ॥
चौपाई:-
माला से हरि सुमिरन कीन्हा। करि किरपा हरि हरि पुर दीन्हा।१।
तुलसी दास कहैं नर दारा। जपौ माल भव होवौ पारा।२।
चौपाई:-
माला से हरि सुमिरन कीन्हा। करि किरपा हरि हरि पुर दीन्हा।१।
तुलसी दास कहैं नर दारा। जपौ माल भव होवौ पारा।२।