३४३ ॥ श्री द्वारिका प्रसाद जी ॥ (अवध वासी) दोहा:- माला से हरि को सुमिरि, दीन भाव उर लाय। कहैं द्वारिका हम गयन, हरि पुर बैठक पाय।१।